जो आजादी मिली हमें वा रूंगे मैं ना थ्याई थी / मंगतराम शास्त्री
जो आजादी मिली हमें वा रूंगे मैं ना थ्याई थी
इस खात्तर खपे लाल हजारों बड़ी मुश्किल तै पाई थी
सन सत्तावन मैं लड़ा गया पहला संग्राम बतावैं सैं
देश के कोणे कोणे मैं माच्या घमासान बतावैं सैं
मंगल पांडे तात्यां टोपे होए कुरबान बतावैं सैं
उस झांसी आळी राणी का ऊंचा बलिदान बतावैं सैं
नब्बे साल तै छिड़ी लड़ाई 47 में रंग ल्याई थी
बहोत घणे संघर्ष हुए थे देश मैं और देश तै बाह्र
विदेशां में फौज बणी एक गदरी बाब्यां की ललकार
हरदयाल एम.ए., सोहन सिंह भकना, बरकतउल्ला, करतार
कामागाटा मारू नामक जहाज पै हो आए असवार
और बहोत से शहीद होए जिनै तन पै गोळी खाई थी
पंजाब केसरी लाला जी नै साईमन को लल्कार्या था
सांडर्स नै आदेश दिया उन्हें लाठियों से मार्या था
लाला जी के बदले का न्यूं शोर मच्या बड़ा भार्या था
भगत सिंह और राजगुरु नै बदला तुरन्त उतार्या था
एक उधम ङ्क्षसह नै भी मार कै डायर आपणी कसम निभाई थी
इस आजादी की खातिर नेता जी चन्द्र बोस खपे
असफाक उल्लाह बिस्मिल और चन्द्रशेखर कर होश खपे
रोशन ङ्क्षसह सुखदेव राजिन्द्र लाहिड़ी भर कै जोश खपे
ना लिखे गए इतिहासां में इसे बहोत से वीर खामोश खपे
कहै मंगतराम आजादी की मिल-जुल कै लड़ी लड़ाई थी