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जो इस बरस नहीं अगले बरस में दे दे तू / शहराम सर्मदी

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जो इस बरस नहीं अगले बरस में दे दे तू
ये काएनात मिरी दस्त-रस में दे दे तू

सुकून चाहता हूँ मैं स़ुकून चाहता हूँ
खुली फ़ज़ा में नहीं तो क़फ़स में दे दे तू

ये क्या कि हर्फ़-ए-दुआ पे भी बर्फ़ जमने लगी
कोई सुलगता शरारा नफ़स में दे दे तू

मैं दोनों काम में मश्शक़ हूँ मगर मुझ को
ज़रा तमीज़ तो इश्क़ ओ हवस में दे दे तू

उस एक शख़्स के साथ एक उम्र रह लूँ मैं
अगर ये साबित ओ सय्यार बस में दे दे तू