भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो उस साँवले को सदा ढूंढता है / बिन्दु जी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो उस साँवले को सदा ढूँढता है।
उसे एक दिन साँवला ढूँढता है॥
जिसे ढूँढने का अमल पड़ चुका है।
वो इसे ढूँढने में मज़ा ढूँढता है॥
अरे दिल जिसे कुल जहाँ ढूँढता है।
वो मुझमें है फिर तू कहाँ ढूँढता है॥
मिला उसको जो दिल मिला ढूँढता है।
जुदा उससे है जो जुदा ढूँढता है॥
जो पूछो पतित ‘बिन्दु’ क्या ढूँढता है?
पतित-बन्धु जी का पता ढूँढता है॥