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जो औचक कहा गया / अज्ञेय
Kavita Kosh से
मैं ने जो नहीं कहा
वह मेरा अपना रहा
रहस्य रहा :
अपनी इस निधि, अपने संयम पर
मैं ने बार-बार अभिमान किया।
पर आज हार की तीक्ष्ण धार
है साल रही : मेरा रहस्य
उतना ही रक्षित है
उतना-भर मेरा रहा
कि जितना किसी अरक्षित क्षण में
तुम ने मुझ से कहला लिया!
जो औचक कहा गया, वह बचा रहा,
जो जतन सँजोया, चला गया।
यह क्या मैं तुम से, या जीवन से
या अपने से छला गया?
नयी दिल्ली, 28 जून, 1968