जो जवानी कमाल लगती है / सादिक़ रिज़वी

जो जवानी कमाल लगती है
ढल के जाँ का वबाल लगती है

मौत दूं या जिला दूं मैं इसको
ज़िंदगी एक सवाल लगती है

बन गयी है ख़याल का पैकर
आशिक़ी बेमिसाल लगती है

वक़्त पर काम आ गयी यारी
दोस्ती बाकमाल लगती है

एक मुफलिस ज़दा को ख़ामोशी
फक्रो-फाक़े की ढाल लगती है

हुस्ने जाँना की हर रविश अब तो
फंसने का एक जाल लगती है

बेहयाई निगाहे आक़िल में
दौर-ए-नौ का ज़वाल लगती है

दिल में बुगज़ो-हसद हो रुख पे खुशी
फितरते बद्खिसाल लगती है

दीन-ए-'सादिक़' में फितना फ़ैलाना
मुल्क दुश्मन की चाल लगती है

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