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जो तुम भूल जाओ मुझे / पाब्लो नेरूदा

Kavita Kosh से
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मैं चाहता हूँ कि ये जान लो तुम

तुम्हें क्या ख़बर कि इस ओर हालत क्या है :
गर मैं देखता हूँ चमकीले चाँद को,
या देखता हूँ अपनी खिड़की पर धीमे पतझड़ की लाल शाख को,
गर मैं छू लूँ आग के नज़दीक बिखरी राख को
या लकड़ी के सिकुड़े जिस्म को,
तो ये हर चीज़ मुझे तुम तक ले जाती है,
जैसे कि, ख़ुशबुएँ, रौशनी, धातुएँ, और हर शय
कोई छोटी नाव हो, जो
ले जाती है मुझे तुम्हारे उन टापूओं की ओर
जो बैठे हैं मेरी प्रतीक्षा में

खैर...
गर धीरे-धीरे तुम अब न चाहो मुझे
तो मैं भी तुमसे चाहत छोड़ दूँगा धीरे-धीरे

गर कभी अचानक
तुम मुझे भूल जाओ
तो फिर तलाश भी न करना मुझे
क्योंकि तब तक मैं भी भुला दूँगा तुम्हें

गर मेरे जीवन में हवाओं की तरह बहती
ये अतीत की परछाइयाँ, उनके सिलसिले
तुम्हें लगते हों बहुत लम्बे.. या लगे मेरा दीवानापन,
और तुम कर लो फ़ैसला
मुझे दिल के साहिल पर छोड़ जाने का,
जहाँ जमा हैं मेरी जड़ें..
तो जान लो कि उसी दिन,
उसी वक़्त
मैं हटा लूँगा अपनी बाहें
और मेरी जड़ें भी निकल पड़ेंगी
दूसरी ज़मीन की तलाश में ।

लेकिन
गर हर दिन,
हर वक़्त,
एक अतृप्त मीठे एहसास की तरह
तुम महसूस करो कि हमारी क़िस्मत में लिखा है एक-दूजे का साथ,
गर हर दिन मुझे सोचते हुए एक फूल खिल जाए तुम्हारे होंठों पर,
आह मेरे प्रेम.. मेरे अपने,
तो मुझमें फिर से जल उठेगा वही शोला
न कुछ बुझा होगा मेरे अन्दर ना ही कुछ भुलाया होगा मैंने,
प्रिये ! मेरा प्रेम तो पलता है तुम्हारे प्रेम से
इसलिए जब तलक तुम हो,
ये प्रेम भी रहेगा तुम्हारी बाँहों में
मेरी बाँहों के साथ ।

भावना मिश्र द्वारा अँग्रेज़ी से अनूदित