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जो तू देख रहा, वह वैसा नहीं है / तारा सिंह

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जो तू देख रहा, वह वैसा नहीं है
तू खुदा तो है, खुदा जैसा नहीं है

जिंदगी जीने के लिए और भी बहुत
है चाहिये, सब कुछ पैसा नहीं है

सूरत तो तेरी मिलती है उससे
पर तू दीखता उसके जैसा नहीं है

गैर की फ़िक्रे वफ़ा अपने आगे सुनकर
भी न जले, मेरा कलेजा वैसा नहीं है

मुद्दत से तुझे मेरी याद न आई, तू
मुझे भूल गई, मेरा आरोप ऐसा नहीं है