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जो थकने लगी वह जवानी बदल दे / रंजना वर्मा

जो थकने लगी वह जवानी बदल दे।
बुरी ग़र लगे तो कहानी बदल दे॥

सहमना सिसकना तड़पना हमेशा
ये औरत की झूठी निशानी बदल दे॥

उठा के जिये सिर सिखा औरतों को
अगर हो सके ज़िन्दगानी बदल दे॥

नहीं न्याय देती समय पर अदालत
ये देरी की आदत पुरानी बदल दे॥

रहा बंद कब से भरा बर्तनों में
लगा बजबजाने वह पानी बदल दे॥

कभी बोल पाती नहीं है हक़ीक़त
जरा सच की ये बेजुबानी बदल दे॥

लगें लड़खड़ाने अगर पाँव तेरे
तू राहों में अपनी रवानी बदल दे॥