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जो दर्दो ग़म न हो तो ऐसी आशिक़ी क्या है / कविता सिंह

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जो दर्दो ग़म न हो तो ऐसी आशिक़ी क्या है
लहू से दिल के न लिक्खी तो शायरी क्या है

कोई बता न सका मुझको दिलबरी क्या है
हैं कहते प्यार किसे और दिल्लगी क्या है

रुबाई कह न सकी और ग़ज़ल हुई ही नहीं
मैं भूल बैठी हूँ अशआर की ख़ुशी क्या है

जो रूह क़ैद है जिन्दान के अंधेरों में
उसे पता ही नहीं साल क्या सदी क्या है

जो पास था उसे क़ुर्बान तो किया तुझपर
ऐ ज़िन्दगी तू बता मुझसे चाहती क्या है

वफ़ा, समझ में भला आएगी उन्हें कैसे
जो आज तक न समझ पाए बंदगी क्या है

भला वह क्या मिरी मजबूरियों को समझेंगे
जिन्हें पता ही नहीं ये के बेबसी क्या है

समन्दरो की बुझाता है प्यास जो ऐ वफ़ा
तुम उस से पूछती क्यों हो के तिश्नगी क्या है