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जो दिल में दाग़ जल रहे हैं / सलीम अहमद

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जो दिल में दाग़ जल रहे हैं
मस्जिद में चराग़ जल रहे हैं

जिस आग से दिल सुलग रहे थे
अब उस से दिमाग़ जल रहे हैं

बचपन मिरा जिन में खेलता था
वो खेत वो बाग़ जल रहे हैं

चेहरे पे हँसी की रौशनी है
आँखों में चराग़ जल रहे हैं

रस्तों में वो आग लग गई है
क़दमों के सुराग़ जल रहे हैं