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जो न समझ सका / रमानाथ अवस्थी
Kavita Kosh से
कोई न मिला जो समझाता
आकाश कहाँ से लाता है
इतने प्यारे-प्यारे तारे
मीठी आँखों में डूब गए
कैसे अनगिन आँसू खारे
कोई न मिला जो समझाता
फूलों को क्यों लाचार किया
जग में केवल मुस्काने को
पत्थर को क्यों न मिली वाणी
मन की आकुलता गाने को
कोई न मिला जो समझाता
कितना जीवित वंशी का स्वर
जिसको न मरण छू पाता है
रोने की तैयारी में क्यों
हर एक यहाँ मुस्काता है
कोई न मिला जो समझाता
धरती पर ऐसे कितने हैं
दे दूँ जिनको जीवन अपना
किसको अपनी सांसें गिन दूँ
बन जाऊँ मैं किसका सपना
कोई न मिला जो समझाता