भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो न समझ सका / रमानाथ अवस्थी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 कोई न मिला जो समझाता

आकाश कहाँ से लाता है
इतने प्यारे-प्यारे तारे
मीठी आँखों में डूब गए
कैसे अनगिन आँसू खारे

कोई न मिला जो समझाता

फूलों को क्यों लाचार किया
जग में केवल मुस्काने को
पत्थर को क्यों न मिली वाणी
मन की आकुलता गाने को

कोई न मिला जो समझाता

कितना जीवित वंशी का स्वर
जिसको न मरण छू पाता है
रोने की तैयारी में क्यों
हर एक यहाँ मुस्काता है

कोई न मिला जो समझाता

धरती पर ऐसे कितने हैं
दे दूँ जिनको जीवन अपना
किसको अपनी सांसें गिन दूँ
बन जाऊँ मैं किसका सपना

कोई न मिला जो समझाता