भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जो बचा सके / नवनीत पाण्डे
Kavita Kosh से
बहुत दिनों से सोच रहा हूं
कुछ सोचना है
सोचकर लिखना है
इसलिए नहीं कि
सोचना आदत है
लिखना हॉबी
इसलिए कि
कहीं पढा था
जो रचेगा, वही बचेगा
और मैं सोच रहा हूं
ऎसा रचाव
जो लिखा जा सके
मुझे बचा सके