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जो भिगोती थी हमें हर रोज़ केरल की तरह / आनंद खत्री
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जो भिगोती थी हमें हर रोज़ केरल की तरह
हो गयी है आज हमसे रूठ, राजस्थान वो
हसरतें मेरी बिहारी सी हमेशा ही रहीं
कर गयी है ज़िन्दगी, आज़ाद हिन्दुस्तान वो
हम हुए फिर से जवां जबसे हुई कश्मीर तू
सुन बनी आतंकवादी, मेरी राहत-जान वो
रोक है हर शौक पे मेरे लगी गुजरात सी
इत्मिना अब भी नहीं है, मेरी आफ़त-जान वो
यूँ नहीं बिन सोच-समझे, हम हुए हरयाणवी
जट्ट बुद्धि से ही बनता है बड़ा इन्सान वो