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जो महब्बत में फ़ना होता है / रतन पंडोरवी
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जो महब्बत में फ़ना होता है
वो बशर ऐने-बक़ा होता है
फिर मिरे होश उड़े जाते हैं
फिर कोई जलवा-नुमा होता है
वो जिसे अपनी ख़बर हो जाये
आप ही अपना ख़ुदा होता है
आज कल ख़ास करम है उन का
आये दिन ज़ुल्म नया जोत है
चश्मे-हक़-बीं के लिए हर ज़र्रा
मज़हिरे-नूरे-ख़ुदा होता है
कूए महबूब का ज़र्रा ज़र्रा
इश्के-आज़म से बड़ा होता है
ग़ैर मुमकिन है मिटाना उस का
जो मुक़द्दर में लिखा होता है
दिले-मायूस तिरा हर आंसू
एक ख़ामोश सदा होता है
हमःतन-गोश हों अहले-महफ़िल
अब 'रतन' नग़मा सरा होता है।