जो रुचिर रुचि से रची हो,
शब्द शासित हो,
प्रवाहत सरित-स्वर हो,
चेतना के
चारु चिंतन से लसित हो,
सृष्टि हो कवि के हृदय की
अर्थ की अभिव्यक्ति हो,
जीवन जिए,
औ’ लोक लय में
झूमती हो।
खिले,
फूले,
ज्योति की
जयमाल जो हो
वही कविता है सुभाषित,
वह नहीं
जो भ्रांतियों से
हो प्रपंचित।
रचनाकाल: ३०-०३-१९९१