जो सजाए हुए लब पर तबस्सुम कितने। 
अब वह अफ़सुर्दा नज़र आते हैं गुमसुम कितने। 
नाख़ुदा तुझ को नहीं, मुझ को पता है इस का। 
हैं तआक़ुब में मिरे अब भी तलातुम कितने। 
मेरे दुख दर्द का होगा न मदावा तुम से। 
जानता हूँ कि हो हमदर्द मिरे तुम कितने। 
आज बेनूर नज़र आती हैं अपनी शामें। 
कल थे दामन में हमारे मह-ओ-अंजुम कितने। 
आप की बातें मिरे दिल में उतर जाती हैं। 
आप के प्यारे हैं अंदाज़-ए-तकल्लुम कितने। 
मुझ से ये बात कोई पूछे सरे-मयख़ाना। 
मस्त आँखों पर निछावर हैं तिरी ख़ुम कितने। 
तेरे लहजे में ग़ज़ल अपनी नहीं पढ़ पाया। 
यूँ तो ईजाद किये हम ने तरन्नुम कितने। 
दूर तक दश्त में पानी का है फ़ुक़दान 'क़मर' । 
ख़ाक ढूँढे हैं वहाँ बहर-ए-तयम्मुम कितने।