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जो सर को उठाना नहीं छोड़ सकता / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
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जो सर को उठाना नहीं छोड़ सकता ,
उसे ये ज़माना नहीं छोड़ सकता !
हक़ीक़त करे लाख इन्सां को रुसवा ,
वो सपने सजाना नहीं छोड़ सकता !
बदलना मुकद्दर नहीं है जो मुमकिन
इसे आज़माना नहीं छोड़ सकता !
ख़ुदा का लिखा है यकीनन कि इन्सां ,
बहाने बनाना नहीं छोड़ सकता !
है दिल तो वो धोखा भी खा कर रहेगा ,
परिन्दा है दाना नहीं छोड़ सकता !