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जो हमारा खून पीने आये थे / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

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जो हमारा खून पीने आये थे
उन को भी दातों पसीने आये थे

पड़ गया ग़ैरत का लंगर पाऊँ में
गौद में लेने सफ़ीने आये थे

हसरतो के मक़बरे में दफ़न हूँ
मेरे खावाबों में ख़ज़ीने आये थे

सर पे इतना बोझ केसे अगया
हम यहाँ दो दिन को जीने आये थे

फूल पर आये थे हम जैसे बबूल
चंद अयसे भी महीने आये थे

दिल पशेमान था न आंसूं आंखं में
शैख़ जी मके मदीने आये थे