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जो हमें कहते थे हरदम, ‘जान से तुम कम नहीं’ / गुलाब खंडेलवाल
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जो हमें कहते थे हरदम, ‘जान से तुम कम नहीं’
जान जाने का हमारी आज उनको ग़म नहीं
आँखों-आँखों ही लिपट जाते गले से आपके
आप अब आये हैं जब इतना भी दम में दम नहीं
हमने काग़ज़ पर उतारी हैं अदायें आपकी
चितवनों की शोख़ियाँ होंगी कभी ये कम नहीं
आपकी नज़रों में माना, हैं वही मस्ती के रंग
पर जो दीवाना बना दे दिल को वह मौसम नहीं
बन के ख़ुशबू बाग़ की हद से निकल आये गुलाब
लाख अब कोई मिटाये, मिट सकेंगे हम नहीं