जौँ लौँ कोऊ पारखी सोँ होन नहिँ पाई भेँट
तब ही लौँ तनक गरीब सोँ सरीरा हैँ ।
पारखी सोँ भेँट होत मोल बढ़ै लाखन को
गुनन के आगर सुबुद्धि गँभीरा हैँ ।
ठाकुर कहत नहिँ निन्दो गुनवारन को
देखिबो को दीन ये सपूत सूरबीरा हैँ ।
ईश्वर के आनस तेँ होत ऎसे मानस
जे मानस सहूरवारे धूर भरे हीरा हैँ ॥
ठाकुर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।