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ज्ञानी / संजय कुंदन
Kavita Kosh से
वह जो ज्ञानी है
जो अपने को तीसमार खाँ समझता है
एक अदृश्य घोड़े पर सवार रहता है
उसके पास एक अदृश्य मुकुट भी है
जो अक्सर वह सिर पर डाले रहता है
वैसे उसके पास एक अदृश्य दुम भी है
जिसे वह खास मौके पर बाहर निकालता है
फिर दुम क्या करती होगी
यह तो समझा ही जा सकता है
कई बार अदृश्य घोड़े पर चढ़ते समय
उसका अदृश्य मुकुट हिलने लगता है
जिसे सँभालने के चक्कर में
वह गिर जाता है
जमीन पर गिरा हुआ ज्ञानी
ज्ञानी नहीं लगता
तब वह गला दबा कर
शब्दों को चबा-चबा कर नहीं बोलता
एक मामूली आदमी की तरह
अनुरोध करता है - जरा उठा दो भाई!