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ज्यूं सैणी तितली / किरण राजपुरोहित ‘नितिला’
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दिन
कितरा अनोखा हुवै
काट्यां नीं कटै
कदी
फुर्रर्र हुय जावै
दीसै विलखा कदी
कदी उमाया
आवै नाचता
अर
जावै गावता
अडीकता रैवां
वांनैं
आस रा रुमालां दांई
अटक्या ई रैय जावै वै
भविस रै रूंख,
अचांणचक ई कदी
यूं आवै भाजता
जाणै अठै ई हा
निगै नीं आया हा
मनाऊं
वांनैं सौगन दिराऊं
रूस्योड़ै टाबर दांई नीं मानै,
धरूं सांयती, बैठ जोऊं
बांधूं निजरां सूं
हथाळी री आडी-तिरछी लींगट्यां बिचाळै
धोरां री उडती रेत ज्यूं
गमती जाऊं
म्हारै पंख लागै
सुपना जागै
थारी छिब उभरै
हथाळी बिचाळै पुहुप ऊगै
जिणरै ओळै-दोळै
उडती फिरूं म्हैं
ज्यूं सैणी तितली।