भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज-बस-कि मश्‍क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है / ग़ालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

.ज-बस-कि मश्‍क़-ए-तमाशा जुनूँ-अलामत है
कुशाद-ओ-बस्त-ए-मिज़्हा सीली-ए-नदामत है

न जानूँ क्यूँकि मिटे दाग़-ए-तान-ए-बद-अहदी
तुझे कि आइना भी वर्ता-ए-मलामत है

ब-पेच-ओ-ताब-ए-हवस सिल्क-ए-आफ़ियत मत तोड़
निगाह-ए-अज्ज़ सर-ए-रिश्‍ता-ए-सलामत है

वफ़ा मुक़ाबिला-ओ-दावा-ए-इश्‍क़ बे-बुनियाद
जुनूँ-ए-साख़्ता ओ फ़स्ल-ए-गुल क़यामत है