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झगड़ालूराम / प्रकाश मनु
Kavita Kosh से
बड़े आलसी भालूराम,
सारे दिन करते आराम।
बेच खा गए नई किताबें
जूते, चप्पल और जुराबें,
मास्टर जी का डंडा खाकर,
क्यों रोते अब चालूराम?
हाथ हाथ पर रखकर बैठे,
रहते हैं ये दिन भर ऐंठे,
इसीलिए तो लोग इन्हें सब
कहते हैं अब टालूराम!
सबसे लड़ते और झगड़ते
दिन-दिन भर ये मन में कुढ़ते,
झल्लाते हैं, झुँझलाते हैं
बिना बात झगड़ालूराम!