भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
झगड़ा किया था जिसने कल रात ज़िन्दगी से
अब बोलता नहीं है वो आदमी किसी से
पाबंदियाँ लगा कर तुम बीन पर ये सोचो
क्या वश में कर सकोगे विषधर को बाँसुरी से
सागर के पाँव में जो हो जाती है समर्पित
ये भाव बन्दगी के सीखेंगे हम नदी से
रखते हैं चाँदनी के वो हाथ पर अंगारे
जबसे हुए हैं उनके सम्बन्ध तीरगी से
ये धूप की चटाई बैठा हुआ हूँ जिसपर
तुमको बिछानी हो तो ले जाइये ख़ुशी से.