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झमकि झहरि छवि रस बरसे, अनमोल दुलहवा / करील जी
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लोक धुन। ताल दादरा
झमकि झहरि छवि रस बरसे, अनमोल दुलहवा।धु्रव।
स्यामघटा छवि छटा छहरि रहौ,
लखि प्रेमिन मन-मोर हरसे, अनमोल.॥1॥
जनम-जनम के सूखल जियरा,
छवि रस बस रस-रस सरसे, अनमोल.॥2॥
छवि-माधुरि-रस सरस बरसि रहे,
तइयो प्रेमीगन पियास तरसे, अनमोल.॥3॥
ई छवि लखि सखि सब जग छूटल,
चलि भई अब पहु-प्रेम डगर से, अनमोल.॥4॥
सतत ‘करील’ सजनि लागी रहे,
लगन की डोरी सियावर से, अनमोल.॥5॥