झुकी हुई पीठ / राग तेलंग
उनकी पीठ हमेशा झुकी हुई दिखेगी
जैसे उनकी पीठ ही उनका चेहरा है
इस चेहरे पर चस्पाँ है एक बोरी
जिसमें हिन्दुस्तान के चिंदी-चिंदी हुए सपने सहेजकर रखे जा रहे हैं
उनकी आँखें गड़ी रहती हैं कचरे के ढेर पर
जहाँ एक भी चीज़ काम की नहीं मानकर फेंकी गई है
वहाँ फिर भी कैसे उम्मीद का अंकुर पनपता है
देखकर हैरत होती है
कचरे के ढेर में इन्हें
कभी कुछ मिलता है, कभी कुछ नहीं मिलता
कुछ मिलने पर
उसके भीतर की आत्मा को
तलाशने का सामूहिक उपक्रम शुरू होता है
फिर दिखाई देती है सबकी पीठ ही एक झुंड में
अचानक
आवारा कुत्तों के भौंकने की आवाज़
बुलाती है इन्हें
फिर सबकी पीठ तितर-बितर हो जाती हैं
ये दौड़ पड़ते हैं नए कचरे के उस ढेर की तरफ़
जहाँ अभी-अभी
इस्तेमालशुदा पुरानी सड़ी-गली दुनिया को
धकियाया गया है हिकारत से
पिछले दरवाजे़ के रास्ते
जहाँ कतार में खड़े हैं वे बच्चे
जिनके पास चेहरा नहीं पीठ है
जिन्हें न्यौता जाता है
बदबूदार समाज को बीनने-छानने के लिए
रोज़ ब रोज़ अलस्सुबह ।