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झुलन झुलाए झाउ झक् झोरे / काजी नज़रुल इस्लाम

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झुलन झुलाए झाउ झक् झोरे, देखो सखी चम्पा लचके,
बादरा गरजे दामिनी दमके।
आओ बृज की कुँआरी ओड़े नील साड़ी,
नील कमल-कली के पहने झुमके।।
हरे धान की लव में हो बाली,
ओड़नी रंगाओ सतरंगी आली,
झुला झुलो डाली डाली,
आओ प्रेम कुँआरी मन भाओ,
प्यारे प्यारे सुरमे सावनी सुनाओ।
रिमझिम रिमझिम पड़ते कोआरे,
सुन पिया पिया कहे मुरली पुकारे,
वही बोली से हिरदय खटके।।