भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठी चमक / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
बुढ्ढे और बुढ़िया
बुढ़िया को बुढ़िया कहो
खाने को आएगी
और
बूढ़े को बूढ़ा कहो
काटने को दौड़ेगा
और
अपने को मान लो
कि
मशीन पुरानी हो गई
कंडम होने को तैयाार है
पर
ये वक्त के मारे
टिप-टॉप में रमे
हकीकत को जानते नहीं
या
समझना ही नहीं चाहते