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झूठ अब झूठ से लड़ता है / केदारनाथ अग्रवाल
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झूठ
अब
झूठ से
लड़ता है
जीता
झूठ
हँसता है
हारा
झूठ
रोता है
रचनाकाल: ०३-०६-१९७०