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झूठ से भी दिल बहल जाता है हज़रत / कैलाश झा ‘किंकर’

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झूठ से भी दिल बहल जाता है हज़रत
दिल को कारोबार से नाता है हज़रत।

दिल की सुनकर जो क़दम आगे बढ़ाता
बाद में वह ख़ूब पछताता है हज़रत।

दिल्लगी दिल की लगी बन जाए फिर तो
शख्स जीवन से ही घबराता है हज़रत।

प्यार तो अब क़ायदे से भी न निभता
फेसबुक का प्यार दहलाता है हज़रत।

प्यार अब व्यापार बिल्कुल बन चुका है
अब मुहब्बत पर तरस आता है हज़रत।