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टनका / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

Kavita Kosh से
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बिहाड़ि काल
गाछक नीचा ठाढ़
नहि रहब
ठाढ़ि खसि सकैछ
चोट लागि जाएत

पोखरि कात
ककरो संग जाय
एकसरि मे
पिछरवाक डर
टांग टूटि जाएत

हाथ बैसाउ
गोल मटोल लिखू
सभ पढ़त
चिरचिरी पारब
किओ नहि बूझत

मधुर बाजू
सभ किओ मानत
सकाले उठू
देह नीक रहत
सभ काज उत्तम

मायक गप
बाबाक उपदेश
सुनबा जोग
पैघ लोकक बात
प्रेरणा दैत छैक

सुनू औ बौआ
वाम कात चलब
नियम छैक
एकरा नहि तोरू
माय बाट तकैत

गुरुक बात
धियान द' सुनब
ज्ञान बढ़त
नित आगाँ रहब
बुद्धि सेहो होयत

नहि डेराउ
भूत नहि होइछ
साहसी बनू
मुइल मने अंत
तकर कोन डर

आसन धरु
देह सोझ रहत
कबड्डी खेलू
खूब भूख लागत
भरि पोख खाएब

बगुला ध्यान
कोनो काजक घड़ी
जरूरी छैक
काज पूर्ण होइछ
अपनहुँ संतोख

अगिल कंठ
उपहासक पात्र
आचारी बनू
उचित बात बाजू
अधलाह सं दूर

रहसबौरा
लोेकक काज नहि
कालक मान
जे किओ करताह
काल संग देतनि

चऽहक गाछ
टूटि‍ जाएत मुदा
झुकत नहि‍
जीव कोनो धरनि‍
कालक संग चलू


कठकोकांड़ि‍
छोट पोखरि‍ जकाॅँ
क्षणेमे मत्त
सर्वगुणी अर्णव
अथाह मुदा शांत


सगरो डर
चारूकात राकस
डि‍रि‍याइछ
वनि‍ताक जीवन
नरक बनि‍ गेल


असमंजस
बाटक कांट जकाँ
बि‍छैत चलू
वक सन धि‍यान
आगाँ बढ़ैत चलू

पाकल बाँस
चार नहि‍ लहय
सोझ बड़ेरी
साङ्गः सनगर
यएह घरहट

अंर्तजालमे
ओझरा गेल अछि‍
नेनाक मोन
नैति‍कताक लोप
आचरण बेहाल

बेटीक हंता
एकटा बेटा लेल
उकि‍याएत
पानि‍ बि‍नु कानब
तैयो कचोट नहि‍

चहटगर
रसायन भरल
नहि‍ चि‍बाउ
देह हएत नाश
सभ कि‍छु चौपट


सभ बेरंग
कहि‍यो अधलाह
नहि‍ देखल
आँखि‍ बि‍नु जीवन
अंशुक अंत भेल


केहेन दंड
एकरा दैव कृपा
केना कहब
कोन कालक डांग
वि‍लोचन निर्मूल

बौआ कमाल
घुघना लाले लाल
भोरे कानय
दि‍नमे रंगताल
फुलल दुनू गाल

इडली डोसा
सदिखन खाएत
दूध देखि कऽ
मुँह विचकाएत
बहसल चि‍लका

कमौआ पूत
बनि कऽ देखबिहेँ
सभसँ आगाँ
विज्ञक समूहमे
कुलक हेतौ नाओं


माँछक झोर
रसगर परोर
देखिते दैया
कानथि बलजोर
माँगथि ति‍लकोर


दि‍न सूतथि
राति भोकरथि
मुनि‍या बेटी
परम सुकुमारि
बैशााखक विहाड़ि


तोहर बेटा
बूढ़ सूढ़ देखिते
गाल बजाबै
एहेन बहसल
केकरो पूत नै


सुनू भजार
चलू आम तोड़ए
चोरिक आम
बड़ सुअदगर
रखबारो सूतल


कैंचाक मोल
कनेक बुझू बाउ
लेमनचूस
बेसी नै चिबाउ
दाँत सड़ि जाएत


दू दुनी चारि
पेटकेँ अजबारि‍
रखने रहू
भानस भऽ रहलै
धंगरि कऽ खाएब


कारी बकरी
टाँग दुनू पकड़ी
छानि कऽ दूध
पीबि पीबि ढ़करी
नहि जेबै सकरी

काँच लताम
नहि चि‍बाउ दाइ
पेट बहत
मारि सेहो लागत
दवाइ नै देब


पाकल फल
वि‍टामि‍न भरल
चिबा कऽ खाउ
रोग नै धरत
पनिगर रहब

पापक घाव
अपरूप अर्बुद
फाटय नहि
बिखक संवाहक
करेज जराबय

विकासलीला
मूल कोरि रहल
रीतिक अंत
मात्र आगाँक सोच
अंतक बाट सेहो

कासक फूल
शारदीय प्रसून
गुलाब रोपू
शाश्वत सहचरी
डेग-डेग छाँह

चल जीवन
परंच स्थिर मन
दुनूक योग
अलि प्रसून जकाँ
तारतम्यक आश

ड्राम बजौता
अझुका नेना सभ
ढोल मृदंग
नहि नीक लागनि
बाह पछबरिआ

नेह सँ दूर
आजुक धीया पूता
हिनक माय
बोतल दूध देथि
तकरे परिणाम

मैथिली छथि
मात्र गाम घ'र मे
सेहो कनैत
भरमि गेली माय
धियान दियौ भाय

गुणी वनिता
पापी पूत सँ नीक
तखन भेद
करब अनुचित
बेटियो केँ बचाउ

गाछक पात
टूटि घुरैत नहि
वाक संयम
मनुजक लक्षण
सोचि विचारि बाजी

पुरैन पात
पानि मे उपजैछ
गुण विलग
संग मुदा अनंग
विद्वान जकाँ शांत

करैत साँप
पिछुआरे काटय
कुटिल जकाँ
पाछाँ प्रहार नहि
ककरो सोझाँ बाजी

मोनक दुःख
सभ केँ नहि कही
लोक हँसैछ
परोपकारी लोक
कलियुग मे नहि

खाधिक बेंग
जहान खत्ता बुझै
सगरो देखू
अहाँ सर्वज्ञ नहि
विज्ञ सँ ज्ञान लिअ

डाकक बोल
अमृत अनमोल
कहने छल
गुरू करी जानि क'
पानि पीबि छानि क'

जड़ि कोरब
अधलाहक काज
एहि सँ बचू
कुपात्र कहाएब
गड़ाइन हएत

वाम करोट
पयर पसारि क'
बिनु गेरुआ
नित सुतू औ बाउ
रोग नहि धरत

परक नारी
अपने माय जकाँ
चरित्रवान
धोखा नहि खाइछ
सगरो यशक भागी

धरती अंडा
अहाँ सेहो अंडे सँ
तखन घृणा
सटलो छुआबय
वाह पण्डितारय

आँखि सँ देखू
वेअह बात बाजू
आनक सुनि
परक उपहास
अमानुषिक वृति

दंड क्षमा मे
क्षमा पैघ होइछ
मुदा कखनो
अनुशासन लेल
दंड सेहो जरूरी

पैरक नीचाँ
लटकलें त' गेलैं
लिखल छल
मनुज चेताबय
मात्र विधान लेल

छल प्रपंच
गुण बनि रहल
राजनीति मे
इएह हथियार
गणतन्त्रक लेल

इंटरनेट
आँखि चिबा रहल
एहि मे बाझि गेल
आजुक लोक सभ
विकसित जहान

सुनू औ वैद्य
आब मोंछ पिजाऊ
डंकल दाना
पोटरी भरि लिअ'
बेमारीक जोड़

सभ विद्वान
एक पर सँ एक
छोट पैघक
कोनो मर्यादा नहि
कत' रहब आब

की ल' जायब
सभ ठामे रहत
गीता कुरान
सभ पढ़ैत छथि
सिकंदर समान