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टर्रू मेंढक / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
पड़ा तमाचा मछली का तो,
टर्रू मेंढक भाग
दौड़ी मछली पीछे-पीछे,
टर्रू भाई आगे।
कूद-फांदकर कैसे भी वह,
जल से बाहर आए।
नदी किनारे की बालू पर,
बहुत देर सुस्ताए।
मछली अगर उछलती जल में,
टर्रूजी चिल्लाते।
आओ मच्छो जल के बाहर,
तुमको मजा चखाते।