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टाव टाव / दीनानाथ ‘नादिम’
Kavita Kosh से
काठ का एक टुकड़ा
सफ़ेदे पर का कौआ ले उड़ा
सफ़ेदे पर जा बैठा
और पेड़ की
सबसे ऊँची फुनगी पर उसको
बड़ा सँभाल कर रखा
इतने काठ के उस टुकड़े को
कूडे़ के ढेर पर गिरा गई
उधर तूत पर बैठे कौए ने काठ को तुरंत खोज लिया
अँधेरे में ही उसे फिर ऊपर ले गया
और उसे खोखर में छुपा के रख लिया
वर्षा की बौछार हुई
टुकड़ा फिर नीचे गिर गया
चिनार से एक कौआ आया और उसे
बीच रास्ते से उठा लिया
और चुपचाप पत्तों को थमा दिया
अब देखना है कि कब तलक उसे
हवा टिकने देगी वहाँ
न लड़की का टुकड़ा कहीं ठहर पा रहा है
न ही कहीं कोई नीड़ बन पा रहा है
प्रातः से हम केवल सुन रहे हैं:
काँय- काँय काँय- काँय।