भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
टीसन धरि / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
सभ केओ
छोड़ियौ
अपन-अपन
हठ।
हठक तारकें
नहि कसियौ
बेसी
कम सेहो
नहि कसियौ
बलू,
सितारक तार जकाँ
मध्यमे
रखियौ
तखने बहरायत
हठसँ
मोहक आ मादक धुन।
जिनगीक रेलगाड़ी
वन-पर्वत
नदी-नाला लाँघि
पहुँचि जयतैक टीसन धरि।