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टूटयौड़ी पांख्यां वाळी चीड़ी / प्रमोद कुमार शर्मा
Kavita Kosh से
म्हारै घर रै
टूटयौड़े जंगळै वाळी खिड़की स्यूं
रोजिना आवै एक टूटयौड़ी पांख्यां वाळी चीड़ी
म्है कई बार उदास हूयौ
पण चीड़ी कदै ई नीं
जणा कै बा आपरी टूटयौड़ी पांख्या माथै
पून नै बिठा‘र
आभै री सैर नी कर सकै।
सोचूं:
चीड़ी उदास क्यूं नीं हुवै।