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टूटा व्यक्तित्व / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
बचपन में
किसी ने यदि --
न देखा
स्नेह-संचित दृष्टि से
अति चाव से,
और पुचकारा नहीं
भर अंक
वत्सल-भाव से,
तो व्यक्ति का व्यक्तित्व
निश्चित
टूटता है।
यौवन में
नहीं यदि --
पा सका कोई
प्रणयिनी
संगिनी का
प्रेम :
निश्छल
एकनिष्ठ
अनन्य !
जीवन --
शुष्क
बोझिल
मरुस्थल मात्र
तृष्णा-जन्य !
तो उस व्यक्ति का व्यक्तित्व
अन्दर और बाहर से
बराबर
टूटता है।
वृद्ध होने पर
नहीं देती सुनायी
यदि --
प्रतिष्ठा-मान की वाणी,
न सुनना चाहता कोई
स्व-अनुभव की कहानी,
मूक
इस अन्तिम चरण पर
व्यक्ति का व्यक्तित्व
सचमुच,
चरमराता है
सदा को
टूट जाता है !