भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूटी हुई दीवार का साया तो नही हूँ / मज़हर इमाम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

टूटी हुई दीवार का साया तो नही हूँ
मैं तेरा ही भूला हुआ वादा तो नहीं हूँ

गुज़रा था दबे पाँव जहाँ से तू शब-ए-माह
मैं ही वो तिरा बाग़-ए-तमन्ना तो नही हूँ

जिस नक़्श पे चलने की क़सम खाती है दुनिया
मैं ही वो तिरा नक़्श-ए-कफ-ए-पा तो नहीं हूँ

औरों से मिरा नाम उलझता है तो उलझे
शिकवा तुझे क्यूँ हो कि मैं तेरा तो नही हूँ

क्यूँ ख़ुद को न चाहूँ कि तिरा दिल तो नहीं मैं
क्यूँ ख़ुद को भुला दूँ कि ज़माना तो नही हूँ

तू मेरी ज़रूरत मिरी आदत तो नहीं है
महताब-ए-ज़मीं में तिरा हाला तो नही हूँ

बागो से उड़ाई हुई ख़ुश्‍बू ही सही तू
मैं निकहत-ए-बे-बाक का पर्दा तो नही हूँ

मैं अक्स-ए-गुरेजाँ तो नहीं अपनी अना का
मै तेरा ही टूटा हुआ रिश्‍ता तो नहीं हूँ

मैं आख़िरी जादू तो नही साहिर-ए-शब का
सहमा हुआ मैं सुब्ह का तारा तो नही हूँ