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टूटे-फूटे विराट पुरुष / दिनेश कुमार शुक्ल

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उन्होंने एक सौरमण्डल का निर्माण किया
और फेंक दिया खगोल की दूरस्थ खत्ती में
बचा हुआ लोहा-लँगड़, कंकर-पत्थर

अब हर रोज
उसी खत्ती से
निकलते चले आते हैं
उन्हीं अनिर्मितियों से बने नये-नये धूमकेतु
धमकाते सारी कायनात को

हमारी आत्मा की भी एक खत्ती है?
जहाँ पड़े हैं कितने ही अर्धनिर्मित स्वप्न,
अर्धजीवित आदर्श, अर्धसत्य,
हमारे ही अपने विखंडित रूप कई
और कई टूटे-फूटे छोटे-मोटे हमारे ही विराट् स्वरूप...