टूटे तिरी निगह से अगर दिल हुबाब का / सौदा
टूटे तिरी निगह से अगर दिल हुबाब१ का
पानी भी फिर पियें तो मज़ा है शराब का
कहता है आईना कि समझ तरबियत२ की क़द्र
जिनने किया है संग३ को हमरंग आब का
दोज़ख़ मुझे क़ुबूल है ऐ मुन्किरो-नकीर४
लेकिन नहीं दिमाग़ सवालो-जवाब का५
था किसके दिल को कश्मकशे-इश्क़ का दिमाग़
यारब बुरा हो दीद-ए-ख़ानाख़राब६ का
ज़ाहिद सभी है नेमते-हक़७ जो है अक्लो-शर्ब८
लेकिन अजब मज़ा है शराबो-कबाब का
ग़ाफ़िल ग़ज़ब से होके करम पर न रख नज़र
पुर है शरारे-बर्क़ से९ दामन सहाब१० का
क़तरा गिरा था जो कि मेरे अश्के-गर्म से
दरिया में है हनोज़११ फफोला हुबाब का
ऐ बर्क़ किस तरह से मैं हैराँ हूँ तुझ कने१३
नक़्शा है ठीक दिल के मिरे इज़्तराब१४ का
‘सौदा’ निगाह दीद-ए-तहक़ीक़१५ के हुज़ूर१६
जल्वा हरेक ज़र्रे में है आफ़ताब१७ का
शब्दार्थ:
१.बुलबुला २.पालन-पोषण ३.पत्थर ४.दो फ़रिश्ते जो इन्सान के
अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब रखते हैं ५.सवाल-जवाब सहने की
हिम्मत नहीं है ६.बरबाद घर वाले की नज़र ७.ईश्वर की दी हुई नेमत
८.खाने-पीने की वस्तुएँ ९.बिजली की चिंगारी से १०.बादल ११.अभी तक
१३.तेरी ख़ातिर १४.बेचैनी १५.खोजी दृष्टि (वाला) १६.सामने १७. सूरज