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टूटे हुए तारे का मुक़द्दर हूँ सद अफ़सोस / रमेश 'कँवल'
Kavita Kosh से
टूटे हुये तारे का मुक़द्दर हूं सद1 अफ़्सोस2
पतझड़ के किसी पेड़ का मंज़र हूं सदअफ़्सोस
तिनके का सहारा भी न था चाह के फिर भी
मैं डूब न पाया किशनावर3 हूं सदअफ़्सोस
मुमकिन नहीं छूना मैं संवारू इन्हें कैसे
आर्इनों के इक ढ़ेर पे आज़र4 हूं सदअफ़्सोस
काम आके मेरे हो गये बेकार सभी गुल
मैं जैसे किसी देवी का मंदिर हूं सदअफ़्सोस
पैमाने में भी झील सी आंखें उभर आर्इं
सच है कि तमन्नाओं का महशर5 हूं सदअफ़्सोस
तुम प्रीत की राहों में रहे शबनमी चादर
मैं आज भी इक मील का पत्थर हूं सदअफ्सोस
गंगा नहीं आती है 'कंवल’ मिलने को मुझसे
तन्हार्इ का बेचैन समुंदर हूँ सदअफ़्सोस
1. सौ 2. पश्चाताप 3. तैराक 4. एक मूर्ति तराश का नाम
5. प्रलयस्थल