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टूट गयी है कुटिया मेरी जग जिसको बेकार कहे / रंजना वर्मा
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टूट गयी है मेरी कुटिया जग जिस को बेकार कहे।
हाथ सँभाले लोटा थाली मन उसको घर बार कहे॥
कोई कहे कल्पना उसको झूठा स्वप्न कहे कोई
मनमोहन को माना अपना चाहे जो संसार कहे॥
नाम श्याम का रटते-रटते छालों भरी हुई जिह्वा
मैं कहती फूलों की माला दुनियाँ जिसको ख़ार कहे॥
इंद्रधनुष का ताना बाना बुना रजत पट-सा जीवन
कोई व्यथा कथा बोले या मनचीता त्यौहार कहे॥
आस निराशा के झूले में निशि दिन रहे झूलता मन
नित खुशियों के फूल खिलाता फिर क्यों कोई भार कहे॥