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ट्राइबल हेरिटेज म्यूजियम / महेश चंद्र पुनेठा

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वहाँ नहीं है कोई
राजा-रानी का रंगमहल
जादुई आईना
रत्न जड़ित राजसिंहासन
पालना
न कोई भारी-भरकम तलवार-ठाल-बरछी
न बन्दूक-तोप-बख़्तरबन्द
न किसी राजा द्वारा जीते युद्धों का वृत्तान्त
न उनकी वंशावली
न भाट-चारणों की विरुदावली
 
वहाँ प्रवेश करते ही
पारम्परिक परिधानों में सजी-धजी
शौका युवतियों की पुतलियाँ
मुस्कराती हुई करती हैं स्वागत
पास में ही रखा है चरखा
जो आज भी रूका नहीं है
जिसमें ऊन कातकर दिखाते हैं शेर सिंह पांगती
आगे बढ़ते ही मिलता है
घराट चलाते हुए एक शौका अधेड़ का पुतला

और हैं वहाँ
मरी भैंस की खाल से बनी धौंकनी
याद दिलाती जो कबीर के दोहे की
निंगाल से बने-मोष्टे, सूपे, भकार
काठ के बने बर्तन
जिनमें कभी गोरस रखा जाता था सुरक्षित
नक्काशीदार दरवाज़े-खिड़कियाँ
दर्शन कराती कुमाउँ के समृ़द्ध काष्ठ शिल्प के

शान्त पड़े हुक्का-चिलम
वहाँ है
हर वह वस्तु
जो जीवन की कठिनतम परिस्थितियों में
आम जन के साथ खड़ी रही
उनके हौंसले की तरह

वहाँ मौजूद हैं-
उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाए जाने वाली जड़ी-बूटियाँ
यारसा गम्बू भी है जिनमें से एक
जो आज
अशान्ति का कारण बन रहा है इस शान्त क्षेत्र में

शेर सिंह पांगती नहीं भूलते दिखाना
वह चकमक पत्थर
और चमड़े के खोल में ढका लोहे का टुकड़ा
ठण्डे से ठण्डे मौसम में भी
जिनकी टकराहट पैदा करती है आग

पहले भारतीय सर्वेयर किशन सिंह और नैन सिंह
की संघर्ष-गाथा की स्मृतियां जीवन्त हो उठती हैं वहाँ

वहाँ नहीं हैं हथियार
वहाँ हैं औजार
जो मानव की क्रूरता-बर्बरता नहीं
सभ्यता के विकास और जीवटता की कहानी सुनाते हैं ।