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ठहर जाओ / केदारनाथ अग्रवाल
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ठहर जाओ
यहीं क्षण भर,
एक गहरी साँस लो--
नि:श्वास छोड़ो
मौन खोए पत्थरों पर
हाथ फेरो,
आँख खोले
भुरभुरा आकाश हेरो,
होंठ से सुनसान चूमो ।
इस जगह पर वह मिली थी
जो प्रकृति की उर्वशी थी ।