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ठिठकना मेरा कहीं दर्ज नहीं / लीलाधर मंडलोई

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देखकर आसपास मनुष्‍य आकार-सा कुछ
उसका स्‍वर नहीं वरन् उसकी अनुगूंज
शताब्दियों पीछे से आ रही एक संपूर्ण मनुष्‍य की प्रतिध्‍वनि

ये थोड़े-बहोत निशानात हैं कहने को
मैं खोजता हूं रास्‍ता चिर-परिचित कि
उतर सकूं उसके भीतर या पुराने दिनों में और
मनुष्‍य तो नहीं एक पुराना दिन मिल जाता है

अचम्‍भे से भर उठता हूं कि जो सामने है
उसके पास कहने को कम-अज-कम एक मनुष्‍य होता
सबके सब फलांगते गए छोड़ अधबीच
वह सोचता है टेमे की गंधाती लौ के बारे में और
चौंधियाने लगती है नियोन बल्‍वों से बूढ़ी आंखें

विज्ञापनों से अटी इस अपरिचित दुनिया में
पढ़ता है होर्डिंग्‍स पर सजी इबारतें खीझता
बहुत से चेहरे होर्डिंग्‍स पर मुस्‍कुराते
हू-ब-हू उन मित्रों की तरह जिनकी पोशाकें
प्रायोजकों ने बनवाई हैं विज्ञापन फिल्‍म के लिए

बच्‍चे बूढ़े दिन के कान में फुसफुसाते हैं और वह
दूर तक फैली भीड़ में ढूंढता है कुछ वैसा
कि जहां समय की गर्द न हो
बचा हो जिसमें अपने होने का ठाठपन

संयोग है कि हम लिथड़े हैं कहने को अपनी गंध से
पंख हमारे गिरते जा रहे हैं
उड़ने में अशक्‍त हम किन्‍हीं पंजों की दबोच में हैं
यहां लुप्‍तप्राय है हमारी हिचकिचाहट
बदल रही हैं परिभाषाएं
बदहवास हैं मिथक
मानक बदल रहे हैं व्‍याकरण के और
कला का रास्‍ता मुड़ रहा है जिधर
अदृश्‍य जादुई तरंगों का संसार है
भाषा एक ऐसी गिरफ्त में दम तोड़ रही है
पीढियां जहां से आधुनिक नरक को कूच करती हैं

बूढ़े दिन से सुना यह कोई किस्‍सा नहीं
न ही हूं मैं कोई किस्‍सागो
यह एक अस्‍फुट आवाज है
एक नस्‍ल डूब रही है बेआवाज
कोई अंतिम कबीला जैसे 'सेउता' या कि 'ग्रेट अंदमानी'

और मैं हूं दौड़ता खंदक-खाइयों में बेतरह
बूढ़े दिन को घेर लिया गया है और
हमारे चारों तरफ कम्‍प्‍यूटर का बाड़ा है
दर्ज करता सब कुछ जो कहीं हरकत में है

सिर्फ संदेह का मेरा अंधकार है बेचेहरा
जिसे देखने को ढूंढता हूं कि हो कहीं
एक नीम पागल की बड़बड़ाहट
एक उद्विग्‍न औरत का संशय
एक अदृश्‍य हो चुकी नदी की कराह
सबका सब यंत्र-तंत्र जबकि दुरूस्‍त
ठिठकना मेरा कहीं दर्ज नहीं.