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ठूँठ की तरह / अदनान कफ़ील दरवेश
Kavita Kosh से
आसमान को
कुछ याद नहीं
कि वो किसके सिर पर
फट पड़ा था एक दिन
ज़मीन को भी कुछ याद नहीं
कि उसने किस-किस की
पसलियाँ तोड़ के रख दी थीं
उन खरोंचों और चोटों को
भूल चुके हैं लोग
और शायद हम भी
अब कहाँ याद है कुछ...
एक दिन तुम भी
मुझे भूल जाओगे
लेकिन मैं बड़ा ही ज़िद्दी पेड़ हूँ
तुम्हारी स्मृतियों में
ठूँठ की तरह
बचा रह जाऊँगा...
(रचनाकाल: 2016)