ठेठ सुरग तै आया था वो हर के बोल सुणावण नै / विरेन सांवङिया
ठेठ सुरग तै आया था वो हर के बोल सुणावण नै।
ज्ञान रूप की जोत जला कै सूते लोग जगावण नै॥
लखमीचन्द पै लेइ दवाई लय सुर ताल मिलाणे की।
गुरू मान कै पैङ दाब ली गाणे और बजाणे की।
जाटी मै गुरू धाम टोह लिया लिखदी कथा ठिकाणे की।
एकलव्य सा भक्त बणा या गुरू भक्ति सै दर्शाणे की।
36 साल तक सांग करे गुरु लखमी याद दुवावण नै॥
भेष जनना धारू ना न्यू गुरू के स्याहमी अङगा था।
दरोगा आली बात के ऊपर ब्याही बीर संग लङगा था।
गंगा नहा कै चला सूरग नै चरण गुरू के पङगा था।
मांगेराम ले रूप हरी का सबके भीतर बङगा था।
बुद्धि नै सव कंठ बैठा वो आया शारदे गावण नै॥
वेद शास्त्र खोल धरे सब जङ का भेद बताया था।
एक एक बोल रसिला करकै मिठे सुर मै गाया था।
बीर मर्द चाहे सुणलो बेटा हर मुक्तक साफ रचाया था।
मांगेराम था गन्धर्व सच्चा जग भ्रम मेटणे आया था।
दुनिया के म्ह सांग करे उनै बिरले भेद बतावण नै॥
गऊ, गंगे का गान करा, दान करा बण दानी रै।
स्कूल सरा तला बणवाए काम करे अभिमानी रै।
बालक बुढे नर नारी उनै मोहे संत और ध्यानी रै।
जात पात के भेद भूला सब करदी कोम ऐकानी रै।
मोह माया और मेर तेर के वो आया जाल हटावण नै॥
सांगी बणकै सांग सुणाए और गीता ज्ञान जुबानी रै।
जन्म मरण की जाणै था वो मोक्ष विषय का ज्ञानी रै।
संस्कृति पै गया छाप छोड दे मांगेराम कुर्बानी रै।
ईब धूल रोलता फिरै जमान टोहवै पैङ निशानी रै।
पणमेशर नै भेज्या था वो खुद की याद दिलावण नै॥
जङ चेतन कर बुद्धि की वो तार कल्पना धरगा रै।
कृष्ण आले रोल रचाकै सब पै काबू करगा रै।
अमृत्व सा ज्ञान दिया वो सबका पेटा भरगा रै।
सांवङिया कहै उसके बिन के लोगां नै इब सरगा रै।
मुरझाई सी गया छोड नगरीया आया ना फेर हसावण नै॥