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ठोकरें खा के सम्भलने का हुनर आता है / अलका मिश्रा

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ठोकरें खा के सम्भलने का हुनर आता है
मुझको हर हाल में चलने का हुनर आता है

ख़ुद कलामी से बड़ा काम लिया है मैंने
मुझको तन्हाई में पलने का हुनर आता है

मैंने पत्थर को भी भगवान बना कर रक्खा
मुझको पत्थर को बदलने का हुनर आता है

दिल के रिश्ते जो बनाएं, तो बनाएँ वो ही
जिनको मुश्किल से निकलने का हुनर आता है

ख़ूबियों से तो कमी से भी हूँ अपनी वाकिफ
मुझको आइनों में ढलने का हुनर आता है