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ठोरक ई मुस्की छीनय ने दुनियाँ ! / धीरेन्द्र
Kavita Kosh से
ठोरक ई मुस्की छीनय ने दुनियाँ !
ठकलक ओना जर आ ठकलक जमीनो,
लेलक बहुत लेख, बनिकए क्यो भिक्षुक।
ठकिकए जमा ठाठ, बनिकए मठोमाठ,
बेधलक हमर मर्म रचिकए ओ टाटक।
जै कएलक से कएलक, आबहु जान छोड़ओ,
एखनहुँ पिबए रक्त क्ये बनि कए ओ ठेंगी ?
रचओ षड्यन्त्र किन्तु हमरा ने पूछओ,
गोहराबो ओ जाकए कोनो रीछपतिकें।
ठठाकए ओना हम मनहिमन हँसै छी,
लाड़्गरि हिलाबए कोनाकए ई कूकुर !
झगड़ा ने आबए, युद्धसँ नहि डरी हम,
बीनओ जाल जतबा बीनय ई दुनियाँ।
सहनसभ करब हम जतबा हो दंशन,
मुदा गीदरक नहि भबकी सहब हम।
चलाबओ समक्षक ओना बरू ओ खड्गे,
पोठ पाछू एना शस्त्र फेंकय ने दुनियाँ !
ठोरक ई मुस्की छीनय ने दुनियाँ !!