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डर / अच्युतानंद मिश्र
Kavita Kosh से
डर दरअसल
एक अँधेरा है
जब सूरज
बुझने लगता है
अपनी माँ की गोद से
चिपटा एक बच्चा
डरने लगता है
माँ चुपके से
उठती है
जला देती है
लालटेन
और दूर
भगा देती है
अँधेरा