भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डर / अच्युतानंद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डर दर‍असल
एक अँधेरा है
जब सूरज
बुझने लगता है
अपनी माँ की गोद से
चिपटा एक बच्चा
डरने लगता है
माँ चुपके से
उठती है
जला देती है
लालटेन
और दूर
भगा देती है
अँधेरा